सर्वे भवन्तु निरामय:
(आत्मगतम्)
आदिकाल से सुखी एवं समृद्ध जीवन की कामनाएँ मानव मात्र की रही हैं परन्तु इन कामनाआें की पूर्ति का प्रथम एवं अनिवार्य सोपान स्वस्थ शरीर है । शारीरिक सुखों की प्राप्ती के अनन्तर ही अन्य सुखों की कल्पना की जा सकती है । लौकिक एवं परलौकिक सुखों के साथ मुक्ति का भी मार्ग प्रशस्त करने वाला यह शरीर ही है । देहमात्र के लिए उपादेय भारतीय संस्कृति, विश्वसंस्कृतियों में अग्रणी रही है क्योंकि इस संस्कृति में जीव मात्र के स्वस्थ जीवन के समाधान छिपे हुए हैं । मैंने अपने आलेख में चार बिन्दुआें पर प्रकाश डाला है जो भारतीय संस्कृति एवं स्वस्थ जीवन के आधार स्तम्भ हैं । गौ, ब्राह्मण, अतिथि एवं आयुर्वेद । ये सभी विषय आदिकाल से आज तक प्रासंगिक रहे हैं इन विषयों का महत्व तो सर्वविदित है परन्तु वर्तमान में मानव निर्मित विकृतियों के कारण ये अनुपादेय हो गये हैं । मैंने अपने आलेख में विषयों की उपयोगिता का प्रतिपादन कर तथ्यों को तर्क संगत शैली में प्रस्तुत करने की चेष्टा की है ताकि भारतीय मनुष्यों के जीवेद् शरद: शतम् के आर्शीवचनों को बोझ रूप मेंे नहीं अपितु आनन्द और प्रसन्नता साथ स्वीकार कर सके । पुनश्च - मैं यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहता हॅुं कि मेरा अभीष्ट लक्ष्य भारतीय संस्कृति के प्रशस्ति गीत गाना नहीं है मेरा मुख्य उद्देश्य मनुष्य के सुखद स्वास्थ्य के रहस्यों को उद्घाटित करना है । अत: मेरे आलेख की परिणिति सर्वे भवन्तु निरामय: में हो यही ईश्वर से मेरी नत प्रार्थना है । पंकज पंडित
गौ
यावज्जीवेत् सुखं जीवेद्, ऋणं कृत्वा घृतम् पीबेत् ।
भस्मी भूतस्य देहस्य, पुनरागमनं कुत: ।।
वर्तमान समय में उपरोक्त पंक्तियाँ अर्थशास्त्र से संबंधित अधिक समझी जाती हैं, बजाय शरीरशास्त्र के । मेरे मतानुसार इसका मुख्य कारण हमारा मानसिक दिवालियापन या वैश्विक गुलामी है । सम्पूर्ण विश्व में भारत ही एकमात्र स्थान हैं, जहाँ गाय को लेकर भूख हड़ताल तक हुई है, यह एक तथ्य है । महामना पंडित मदन मोहन मालवीयजी ने भारतीय संस्कृति के तीन आधार बतलाए थे गौ, अतिथि एवं ब्राह्मण । गौ का महात्म्य केवल पुस्तकों एवं कर्मकाण्ड, कदाचित रूढ़ियों तक ही सीमित हो गया है, ऐसा मेरा निश्चित मत है अन्यथा ऋणं कृत्वा.... का विश्लेषण करने की आवश्यकता ही नहीं थी । आयुर्वेद के मतानुसार जो व्यक्ति अपने भोजन में घी का समावेश करता है, वह व्यक्ति जब तक जीवन है, तब तक सुखपूर्वक निरोगी जीवन व्यतीत करता है । घी खाने की सामर्थ्य न होने पर भी कर्ज लेकर घी खाने को इसलिये कहा गया है, इसके पीछे भाव यह है कि यदि आप कैस भी घी का सेवन कर लेते हैं तो आपके स्वस्थ होने में संदेह नहीं है। स्वस्थ शरीर वाले व्यक्ति का मन भी स्वस्थ ही होता है एंव वह कभी किसी का कर्ज नहीं रखता एवं उसके समस्त कर्म स्वस्थ होते हैं । आयुर्वेद में स्वस्थ शरीर प्रािप्त् हेतु कायाकल्प चिकित्सा ,दूसरे शब्दों में पंचकर्म चिकित्सा के विधान में वर्णित एक महत्वपूर्ण कर्म स्नेहन में घी का विभिन्न प्रकार से सेवन अनिवार्य है । मैंने स्वयं होश संभालने के बाद से ३० वर्ष की आयु तक घी का सेवन नहीं किया था क्योंकि मैं खाँसी, श्वास रोग से पीड़ित था । वैद्यकिय निरीक्षण में लगभग ५ से ७ कि.ग्रा. तक घी का सेवन प्रतिमाह रोग की गंभीरावस्था में भी मैंने किया, यह क्रम लगभग १८ माह तक चला । घी को कच्च्े स्वरूप मेें मैंने उपयोग में न लेकर, गर्म करके (धर्म उठने तक) ही उपयोग में लिया है । आज मैं स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहा हूँ । पिछले ८-९ वर्षोंा से लगातार सैकड़ों किस्म के रोगों में पीलिया को छोड़कर, घी का नि:संकोच सेवन एवं इसके सकारात्मक परिणाम मैंने देखे हैं । गौ के सर्वश्रेष्ठ उत्पाद घी से संबंधित उक्ति ऋणं कृत्वा .... को जब विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में पढ़ता हँू तो मेरा हृदय व्यथित हो उठता है । इन तथाकित बुद्धिजीवियों की गुलाम मानसिकता से, समस्त पहलुआें का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सामना करने के लिए स्वयं को प्रस्तुत करते हुए निवेदन करता हॅूं कि घी को समझे बिना गौ को अधूरा होगा, रूढिवादिता होगी, कर्मकाण्ड होगा । महर्षि चरक अथवा महर्षि चार्वाक दोनों ने ही घी की वंदना की है, भगवान धनवंतरी सभी को घी के समझ की बुद्धि देंगे, इसी विश्वास के साथ ।(पंकज पंडित)२७,देवरा देवनारायण नगर, रतलाम९८२६७-५५०९७
6 comments:
ब्राह्मण ज्ञान के दीप जलाने का नाम है,
ब्राह्मण विद्या का प्रकाश फैलाने का काम है।
aapka ye lekh padkar adhbhut gyan mila or sahi tarika samaz aaya bahut bahut koti koti parndam
अद्भुत एवं जरुरी जानकारी के लिए आपका धन्यवाद। इस पर बहुत ही समय से जानना चाह रही थी क्योंकि आज की आधुनिक जनरेशन को तो ये ही बताया जाता है कि घी नहीं खाना है मोटे हो जाओगे बहुत कैलोरी है।
बेहतरीन🙏🙏🙏
मेने देखा है आपको पर्यावरण और ओषधि के लिए ओर आपकी गो घी की पद्धति को कृतज्ञ हु , मुग्धयुष इनमें से एक है जिसका लाभ आज भी ले रहा हु धन्यवाद आपका।😎🙏
बेहतरीन🙏🙏🙏
मेने देखा है आपको पर्यावरण और ओषधि के लिए ओर आपकी गो घी की पद्धति को कृतज्ञ हु , मुग्धयुष इनमें से एक है जिसका लाभ आज भी ले रहा हु धन्यवाद आपका।😎🙏
प्रणाम पंडित साहेब
आपके हमेशा बढिया विचारो से औंर मार्ग दर्शन से हम तरोताजा रहते हैं.
Post a Comment