Saturday, September 27, 2008



वृक्ष, क्यों हमारे मित्र नहीं ।
वैज्ञानिक दृष्टि से / सामाजिक दृष्टि से / धार्मिक दृष्टि से/ स्वतंत्र मस्तिष्क की दृष्टि से / वसुधैव कुटुम्बकम की दृष्टि से / हृदय की दृष्टि से, नैत्रों को अपने चारों और बिछा, प्रकृति का हरापन नेत्रों को राहत दिलाता है । यह एक ऐसा सत्य है जो यह कह सकते हंै कि पृथ्वी पर मानव अस्तित्व के बने रहने तक बना रहना है । इस हरे रंग के आश्चर्यजनक प्रभाव को इस तरह भी समझ सकते हैं। भौतिक शास्त्र की दृष्टि से सूर्य का प्रकाश अथवा कोई भी प्रकाश की किरण काँच से बने प्रिज्म से गुजरती है तो सात रंगों में विभक्त हो जाती है - बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल । प्रिज्म तो एक साधारण यंत्र है । अब तो मनुष्य रंगीन चित्र, हवा में भेजना और प्राप्त् करना सीख गया है । इन रंगों को जब इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों द्वारा देखा जाता है तो जो स्प्रेक्ट्रम प्राप्त् होता है उससे इन रंगों की स्थिति स्पष्ट होती है चित्र में स्पष्ट पता चलता है कि यह लगभग शिवलिंग की आकृति है एवं हरा रंग लगभग इसके उपर के हिस्से के नजदीक है । इसका सीधा संबंध, मुस्लिम समाज की उस अवधारणा/ अभिभूति से है जिसमें उल्लेख है कि अल्लाह - एक नूर है । नूर का शाब्दिक अर्थ, मेरी समझ से प्रकाश की अद्भुत किरण से है, सूरज की पहली किरण, जिससे की सभी कुछ जीवंत है । श्री चंद्रबली पांडेय (बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय) ने महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी की पूजा में हिन्दी भाषा में एक पुस्तक प्रकाशित करवाई थी । (सरस्वती प्रकाशन वर्ष १९४४-४५) तसव्वुफ अथवा सूफीमत । इस पुस्तक को मैंने पढ़ी है, जो मुझे महसूस हुआ वह है कि, भोजन में जो स्थान रामरस (नमक) का है वही स्थान हिन्दू समाज / मुस्लिम समाज में सूफीमत का है । दूसरे शब्दों में और थोड़ा स्पष्ट कर यूं भी कह सकते हैं कि सूफीमत , भारत का प्रसाद अथवा वेदांत का मधुर गान है, नि:संदेह यह भारत भूमि की शान है । प्रकृति की हरीतिमा बनी रहे यह जीवमात्र का धर्म है। सभ्यताएं, संस्कृति की दासी होती हैं । सभ्यताएं युद्ध करती हैं /शांति से रहती है , वहीं संस्कृति सदैव परिमार्जित होती रहती है । संस्कृतियों का मिलन/ तीनों ऋतुआें का मिलन , पावन भारत भमि पर ही संभव हुआ है । अपने चारों ओर हरियाली देखने का इच्छुक ।

3 comments:

premanshu said...

It is too good,

Unknown said...

Good

Unknown said...

I have used Sodhan kriya back in 2000-2001 only for 1.5 years and effects were visible that I did not get sick(even fever) for many years.
I stopped following
back in 2013 -2014 I started having seasonal allergies and it started bothering more every year passing.
In 2019 when i contacted Pankaj bhaiya he suggested my to start with virechan and result were visible after 4-5 days and then i took booster dose with vasti.
Result were very much visible.