Saturday, September 27, 2008


ब्राह्मण
जो ब्रह्म को जानता है, वहीब्राह्मण है । यह एक सर्वमान्य परिभाषा है । मैं इस विषय में यही कहना चाहूँगा कि ब्राह्मण के सभी प्रतीकों से दूर, वेद-विहीन व्यक्ति, जो ब्राह्मण कुल में जन्म ले, अनपढ़ ब्राह्मण कहला सकता है । मैं स्वयं को अनपढ़ ब्राह्मण मानते हुए अपने जीवन के अनुभव पर इस विषय में कुछ निवेदन करना चाहता हँू । मेरा पहला मानना है कि ब्रह्म ज्ञान तो ठीक है, आप क्या खाते हैं, आपका आहार क्या है, यह ज्ञान तो ब्राह्मण को होना ही चाहिए क्योंकि जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन । वर्तमान समय में स्वास्थ्य रक्षा के प्रयोजन हेतु जो गोली, दवाई, इंजेक्शन का आप सेवन करते है क्या आपको उसका ज्ञान है, क्या आप जानते है उसमें क्या मिला हुआ है ? आदि-आदि । हमारे वर्तमान समाज में कोई युवा/प्रौढ़ यदि मद्य (शराब) का सेवन कर लेता है तो पूरा समाज उसके ब्राह्मण होने पर उंगली उठाते हैं, जबकि वह तो जानता है कि यह मद्य है एवं मैं इसका सेवन कर रहा हूूॅं । मैं तर्क के माध्यम से मद्यपान का समर्थक बिल्कुल नहंी हूँ, वरन् वस्तुस्थिति स्पष्ट कर रहा हूँ, नि:संदेह दोनों स्थितियों में भाव भिन्नता है । मेरा पूर्ण विश्वास है कि आहार ज्ञान प्राप्त् करने के लिए आयुर्वेद आज भी अपनी पूर्णता के साथ उपलब्ध है । यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन काल में रोगी होने पर / विपरीत स्थिति होने पर अपना जीवन बचाने के लिए किन्हीं विशेष परिस्थितियों में किसी अखाद्य पदार्थ का सेवन करता है तो यह स्थिति ब्राह्मणत्व पर दाग नहीं है, बल्कि आपद्धर्म है । हमेशा इन्हीं स्थितियों पर बने रहने पर, इन स्थितियों से उबरने का प्रयास न करना, ब्राह्मणत्व के अवसाद में जाने की स्थिति के समान है । वर्तमान में इसी अवसाद के परिणाम के स्वरूप ब्राह्मणत्व की एक अन्य परिभाषा ब्राह्मण कभी संचय नहीं करता भी धूमिल हो रही है । परिवार को साथ लेकर चलने वाले सामान्य गृहस्थ के मन में संशय बना रहता है कि जीवन में कौन जाने कब कैसी स्थिति हो जाए (आपॅरेशन आदि) । उस विपरीत स्थिति के आ जाने का भय, संचय करवाता ही है । इस स्थिति से वे लोग ही ऊपर उठ सकते हैं जो अपने पैसे को सही तरीके से खाना जानते हैं। ऐसा व्यक्ति शरीर से / मन से निर्भय हो, बैंक की अपेक्षा शरीर में संचय करना सीख जाता है । मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि जितना ब्राह्मण स्वस्थ होगा, भारत की संस्कृति भी उतनी ही पुष्ट होगी । आयुर्वेद में स्पष्ट है सर्वमन्येत् परित्यज्यात् , शरीरम् अनुपालयेत् अर्थात सब कुछ छोड़कर सबसे पहले अपने शरीर की ओर ध्यान दो । अन्यथा कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना, कभी वो भी मना......

वृक्ष, क्यों हमारे मित्र नहीं ?
विचित्र किन्तु सत्य शीर्षक के नीचे लिखी बातें अक्सर पाठकों को उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं । इसी स्वार्थी भाव से प्रेरित होकर मैं मेरे निजी अनुभव के आधार पर वृक्ष क्यों हमारे मित्र नहंी के माध्यम से आपके सामने रूबरू होने का प्रयास कर रहा हूँ । वर्तमान समय में वृक्षों एवं मनुष्य के बीच किसी प्रकार का मैत्री भाव नहीं है , ऐसा मेरा निश्चित मत है । मित्रता परस्पर प्रेम और सहयोग पर आधारित होती है ।मित्रता, सुख - दु:ख दोनों स्थितियों में जो मित्र रहे, वही मित्र होता है । हम लोग आज शहरों में वृक्षों के नीचे गाड़ी खड़ी करते हैं, बैंठते हैं, शुद्ध हवा लेते हैं, फलवाले हों तो फल भी लेते हैं । समग्र दृष्टि में जीवन की अत्यंत विपरित स्थिति जो निर्विवाद एक ही होती है,रूग्णावस्था/ बीमारी की अवस्था । इस रूग्णावस्था में आप उनसे कोई सहयोग नहीं लेते हैं । यहाँ प्रश्न यह है कि आपका मित्र (वृक्ष) तो मूक है , वह आपसे कह नहीं सकता कि मेरी मदद लो, वह आपके पास चलकर आ भी तो नहंी सकता है । आवश्यकता तो आपको है, रूग्ण तो आप हैं, मदद तो आपको ही मांगनी होगी, कुँआ चलकर प्यासे के पास आने से रहा ? जी हाँ जनाब, आपकी रूग्णावस्था की इस विषम स्थिति में आपके अहंकार/अज्ञान के कारण आपका मित्र चाहकर भी आपकी मदद न कर पा रहा है । ठीक है , आप तो आपके चिकित्सक के पास चले गये,दवाई ले ली, आपका दु:ख कुछ कम हुआ । आप अपनी नियमित दिनचर्या में पहले भी व्यस्त थे/फिर व्यस्त हो गए । एक दिन वह पेड़ रूग्ण हुआ, सूख गया ,काट डाला गया, नहंीं रहा ............. । लकड़ियां काम आई । आपने उसे याद किया, नहीं किया ............. । वो जो आपका वृक्ष मित्र था, उसकी आपसे मित्रता निश्चित थी। आप जब भी उसे पानी पिलाते थे वह पीता था, विष भी पिलाते थे, तब भी वह पीता था । आपका प्रेम उसे हर स्थिति में स्वीकार्य थी, लेकिन आपको उसका प्रेम स्वीकार न था । ऊपर की सारी बातों में दो चीजें उभर कर आती हैं, जीवन की सबसे दुरूह स्थिति रूग्णावस्था है एवं हम उस समय अपने वृक्ष मित्रों की मदद नहीं ले पाते हैं । अब हम प्रथम स्थिति रूग्णावस्था के विषय में चिन्तन करते हैं - रूग्णावस्था आती है / हम बुलाते हैं /भाग्य में है / जो भी है वह आ ही गई है । इस विकट स्थिति में चलिए आचार्य चाणक्य की मदद लेते हैं । सर्तकता अच्छी है, बुद्धिमानी का आभूषण है, लेकिन विपरित स्थिति आ जाए तो साहस ही आपको निकाल सकता है । मान लिया हम साहस एकत्र कर वृक्ष मित्रों की मदद से, रूग्णावस्था से, पार पाने की / आजाद होने की कोशिश करेंगें । सनद रहे, इस दिशा में वृक्षों से मदद सीधे न मिलेगी क्योंकि वे तो मूक हैं । आपको आयुर्वेद की शरण में जाना ही होगा । चलिए आप अच्छे साहसी हैं, आपने यहाँ भी कूदने का मन बना लिया । सनद रहे, आपके आसपास का वातावरण आपकी मदद भी करता है, प्रेम भी करता है , जिसमें आपके आत्मीय स्वजन, मित्र, रिश्तेदार, परिचित/ अपरिचित सभी होते हैं फिर यह तो आपकी रूग्णावस्था की स्थिति है । अब साहस कर आप अपने स्वजनों से दिल की बात कहते हैं । मैं रूग्णावस्था की इस स्थिति में अपने वृक्ष मित्रों की मदद से अपने को स्वस्थ करना चाहता हूँ, कृपया मेरी मदद करें । आपके आसपास के वातावरण में गंभीर चिंतन होगा तत्पश्चात् आवाजें गुँजेेंगीं । आप बुद्धिमान हैं, साहसी है, पढ़े-लिखे हैं , पहले स्वस्थ हो जाइये फिर वृक्षों से मित्रता की बातें तो करते ही हैं/ होती भी रहेगी / आपके स्वस्थ होने पर वृक्षारोपण कार्यक्रम करवा देंगे । अधिक आत्मीयता वाले स्वजन आपकी एक न सुने । आपको अपहरण कर /बलात/ प्रेमपूर्वक चिकित्सक के पास ले ही जावे, यहाँ इस बात की संभावना ९९ प्रतिशत है । चलिए, आपने अपने साहस के बल पर यहाँ भी बाजी मार ली, आप चाणक्य महोदय को नहंी भूले, आप अद्वितीय साहसी हैं, नि:संदेह आपको साधुवाद । आयुर्वेद के पथ पर वृक्ष आपका नि:शब्द स्वागत करते हैं । मैं भी हाथ जोड़े खड़ा हूँ , लेकिन कुछ कहना शेष है ।पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले ।है पुस्तकों में नहीं लिखी गई,इसकी कहानी ।हाल इसका ज्ञात होता,है औरों की जबानी ।पूर्व चलने के बटोही .... - श्री हरिवंशराय बच्च्न
उपर्युक्त पंक्तियों के द्वारा आपको सावधान करने की आवश्यकता हैैक्योंकि पूर्ण आयुर्वेद को अपनाकर जीवन जीने वाले लोग ९९ प्रतिशत नहीं हैं और आप उन एक प्रतिशत साहसी लोगों में हैं जो इस आयुर्वेद की राह में है , जो कि बहुत कंटीली हो गई है / कर दी गई है । यह एक सत्य तथ्य है कि शासन की ओर से /शासन पर दबाव से, आयुर्वेद को उतना प्रश्रय नहीं हैजितना आवश्यक है, क्योंकि आयुर्वेद ही नहंी बल्कि मानव जीवन का सीधा संबंध वृक्षों से है । वर्तमान में आयुर्वेद की स्थिति के विषय विवेचन को लेकर स्वयं आयुर्वेद में शिक्षित लोग भी मौन है । वर्तमान समाज कुछ भी कह पाने की स्थिति में नहीं है । मीडिया की खामोशी / अज्ञानता, वर्तमान स्थिति को बनाए हुए है । उदाहरण स्वरूप एक खबर वृक्षारोपण को लेकर निम्नानुसार अखबारों में छपती है । ............ (स्थान) पर वृक्षारोपण सम्पन्न । फलाँ - फलाँ स्थान पर माननीय मंत्री महोदय फलाँ - फलाँ ने आज प्रात: १००/२००/५००/...... फलाँ - फलाँ की संख्या में पौधारोपण कार्यक्रम में अपने कर कमलांे से पौधे लगाए । इस अवसरपर नगर के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे, उनमें सर्वश्री फलाँ - फलाँ पद फलाँ - फलाँ माननीय मंत्री महोदय फलाँ - फलाँ ने इस अवसर पर सर्वसाधारण को संबोधित करते हुए कहा - फलाँ - फलाँ। पूरी खबर में यह कहीं नहीं /सामान्यत: कभी नहीं बतलाया जाता कि किस वृक्ष के पौधे रोपे गए एवं इसी के क्यों रोपे गए । हाँ जनाब पुन: अब रूग्ण व्यक्ति को अखबार की यह खबर कभी लाभ न दे पायेगी । वृक्षारोपण ग्रामों /शहरों में किस आधार पर हो इस पर चिंतन कर जो विचार किया है वो निम्नानुसार है । वृक्ष चयन से पूर्व उस क्षैत्र में जिस रोग के रोगी अधिक संख्या में हो, उस रोग का उन्मूलन रोकथाम कर सकें, ऐसे वृक्ष लगाना चाहिए इसके लिए सब्र की आवश्यकता होती है ।उदाहरण :- तहसील मुल्थान, जिला मंदसौर में सिलिकोसीस नाम के रोग से ग्रसित लोग काफी हैं । इस क्षैत्र में स्लेट - पेन्सिल के कारखाने हैं, जिनकी धूल कामगारों / राहगीरों/रहवासियों के फेंफड़ों में जाती है । इस रोग में रोगी को खाँसी, श्वास , मुँह से खून (खाँसी के साथ) आता है एवं अंत में मृत्यु हो जाती है । इस क्षैत्र में आवंला लगाना आवश्यक है । यदि यह प्रचुरता में घरों में नि:शुल्क पहुँचने लगे तो विश्वास जानिए गुणी महिलाएँ आंवले को मुरब्बे आदि के रूप में आपके शरीर में पहुँचा ही देगी । अंततोगत्वा यह आपके सच्च्े मित्र बनेंगें ही इसमें संदेह नहीं है । वृक्ष को आपका मित्र बना पाने में समर्थ आयुर्वेद की पत्रिकाआें की स्थिति देखिए और देखिए इनकी सतर्कता का नमूना । फलाँ - फलाँ की बीमारी में फलाँ - फलाँ वृक्ष के पत्तों का क्वाथ /फान्ट लेने से रोगी को शीघ्र लाभ हो सकता है । ऊपर की खबर में अंतिम शब्द हो सकता है, के बारे में रूग्ण व्यक्ति यही कहेगा कि प्रयोग मेरे ऊपर न हो, भले ही मुझे मित्रता करनी है वृक्षों सेे भले ही मैं १ प्रतिशत में आ गया हूँ, क्योंकि आत्महत्या तो महापाप है । हो सकता है लिखने वाले शब्द कभी निश्चित नहीं हो सकते हैं । अत: पत्रिकाआें में ऐसे लेख रूग्ण व्यक्ति की वृक्षों से मित्रता कभी न करा पाएेंगें । ऐसा मेरा निश्चित मत है । यदि लेख में होता है लिखा होता तो वह विश्वास योग्य होता । होशियार, लेख में कहीं न कहंी यह भी लिखा होगा वैद्यकीय निरिक्षण में । मैंने स्वयं पिछले ८-९ वर्षोंा में पूर्ण आयुर्वेद पर आश्रित होकर जीवन जीने की कोशिश की है । मुझे जो तकलीफें पेश आई है, उनमें सर्वप्रथम है रात्रि में आयुर्वेद की दवाई की दुकान खुली नहीं मिलती है, इंदौर जैसे महानगर में भी छोटे स्थान की तो बात ही छोड़िए । वृक्षों को मित्र बनाने में राजनीति आपकी मदद कर सकती है । राजनीतिक इच्छाशक्ति से समाज/ देश की दिशा बदलना बहुत आसान है । लोकतंत्र में चुने हुए प्रतिनिधि यदि १ प्रतिशत में आते हों (वास्तविक वृक्ष प्रेमी ) तो १ प्रतिशत को १०० प्रतिशत में बदलने में कोई देर न लगेगी । कोऊ नृप होवे हमें का हानि का विचार छोड़कर अपने वोट के बारे में गहराई से विचार आपको निश्चित ही वृक्षों से मित्रता के पथ पर ले जावेगा । आचार्य रजनीश से शांति के बारे में पूछने पर उन्होंने प्रति प्रश्न कर डाला महाशय क्या आप अशांति के बारे में जानते हैं, नहीं जवाब देने पर उन्होंने समझाया - अशांति तीन प्रकार की होती है :- १. शारीरिक अशांति २. मानसिक अशंाति ३. आध्यात्मिक अशांति सबसे पहले और निचले दर्जे की सबसे घटिया अशांति, शारीरिक अशांति , इसे दूर करने के लिए आप यदि इन वृक्ष मित्रों की सहायता लेते हैं तो क्रमानुसार आपकी तीनों अशांतियां शांत होंगी । राजस्थान में बिश्नोई समाज के ३७९ स्त्री/पुरूषों ने वृक्षों को बचाने के लिए अपना जीवन होम दिया । इन अनन्य वृक्ष प्रेमियों / अमर शहीदों, ज्ञात/अज्ञात को शत्-शत् प्रणाम ।

3 comments:

अनुनाद सिंह said...

आपने बहुत गहराई से तर्क करते हुए ज्ञानवर्धक सामग्री परोसी हैपढ़कर अच्छा लगा।

pankaj pandit said...

Thanks,You are Really having patience but I Think you have touched only one part of it.I am requesting for some more comments on other my extended articles.

Komal TRIPATHI said...

Thoda aur vistaar se samjhane ki kripa Kare kyu ki brahm h kya hume to y bhi nhi pata aur bina brahm ko jaane brahm gyan kaise prapt kare hum aapki baatein ekdam satya h