Saturday, September 27, 2008

अतिथि
अत्यम्बु पानान्न..विपच्च्ते..न्तं, अनम्बु पानान्न च स एव दोष:।
तस्मात् नरो अग्नि: विवर्धनार्थं, मुहु र्मुहु वारि पिबेत् भूरि ।।
भोजन के साथ अधिक पानी पीने से वह अपच का कारण होता है, इसी प्रकार भोजन के साथ बिल्कुल पानी न पीना भी अपच कारी कारण है । अतएव हम एसा क्या करें जिससे कि देह में व्याप्त् अग्नि उचित रीति से जलती भी रहें और उसे सही इंधन प्राप्त् हो । इस हेतु कहा गया है कि भोजन के साथ बहुत थोड़ा सा जल, थोड़ी-थोड़ी देर बाद लेते रहना चाहिए । इस तथ्य की पुष्टि/विश्लेषण, यथासंभव मैंने ईमानदारी के साथ करने का प्रयास किया है । स्वस्थ जीवन के तीन आधार सूत्र महर्षि चरक के अनुसार आहार, निद्रा एवं ब्रह्मचर्य है । आहार की दृष्टि से आमाशय को चार भागों में बांटा जावे तो एक भाग खाली तथा शेष तीन में से आधा भोजन एवं आधा पानी के हवाले आयुर्वेद अनुसार हो जाता है । वर्तमान समय में शादी-ब्याह एवं अन्य अवसरों पर बैठक भोजन का स्थान, बफर डीनर (स्नेह भोज) ने शहरों में निर्विवादित तौर पर ले लिया है । बफर डीनर करते समय प्रति तीन चार ग्रास भोजन के पश्चात् घूंट भर पानी शरीर में जाना किसी प्रकार संभव नहीं हैं । एक हाथ में थाली एवं एक हाथ में पानी का गिलास पकड़कर भोजन करना नितांत असंभव है । इस प्रकार का सूखा भोजन आयुर्वेद के अनुसार अतिसार रोगी, जलोदर रोगी के लिए उत्तम है, लेकिन स्वस्थ्य व्यक्ति के लिए नहीं । अत: मुहुरी मुहुरी...... की अवधारणा में बफर डीनर (स्नेह भोज) योग्य नहीं है । स्वस्थ जीवन जीने का ध्येय रखने वाले अतिथि को बफर डीनर में भोजन करने से पूर्ण तृिप्त् का अहसास कभी नहीं होता । भारतीय संस्कृति अतिथि देवो भव परम्परा में विश्वास रखती है एवं हमारा हृदय अतिथि से निवेदन करता हैं । हमारे अतिथि बन द्वार हमारे पधारो । अपने हवनकुंड में, भोजन हमारा स्वीकारो ।। प्रतिक्षा में हैं हम, समिधा सुगंधित लेकर । आहुति दीजिए देवता, अपने कर कमलों से हवि देकर ।। प्रार्थना करें हम, मन हो आपका अन्नमय । प्रार्थना करें हम, प्राण हो आपके जलमय ।। पंच महाभूत के साक्ष्य में, आशा करते हैं हम । वर्षा होगी आपके आशीर्वचन की, हो आपकी वाणी तेजोमय ।। उपरोक्त पंक्तियों में मन अन्नमय एवं प्राण जलमय होने पर ही अतिथि की वाणी तेजोमय होती है एवं भोजन करवाने वाले का लगा हुआ धन/भाव इच्छित सुफल प्राप्त् करता है । मन अन्नमय से अभिप्राय है कर चुके भोजन में, अन्न का स्थूल भाग मांस में, अपशिष्ट भाग मल में एवं सुक्ष्म भाग मन को प्राप्त् होता है । प्राण जलमय से अभिप्राय है कर चुके भोजन में, जल का स्थुल भाग रक्त में, अपशिष्ट भाग मूत्र में एवं सूक्ष्यम भाग प्राणों को प्राप्त् होता है । इसके उपरान्त ही अतिथि की वाणी तेजोमय हो पाती है एवं उसके आशीर्वचन निष्फल नहीं रहते है । शादी-ब्याह के मौकों पर स्वेच्छा से सक्रीय सहयोग देने वाले कार्यकर्ताआें/मित्रों से मैंने चर्चा की है एवं प्रयोग द्वारा यह पाया है कि बैठक भोजन वाली व्यवस्था में, बफर डीनर की अपेक्षा २० प्रतिशत खर्च में कमी आती है एवं हम प्रकृति के प्रति सच्च्े मित्र भी साबित होते हैं । भोजन करते समय मौन का अपना महत्व होता हैं, यह सुख बैठक व्यवस्था वाले भोजन में ही प्राप्त् हो सकता है । भोजन करते समय की मुद्रा का प्रभाव भी शरीर पर आयुर्वेद के अनुसार होता है एवं यह भी बैठकर भोजन के पक्ष में ही है । मेरी समझ में, समझदार युवा वर्ग आगे आकर बड़ी आसानी से बैठक व्यवस्था वाले भोजन का चलन पुन: शहरों में प्रारंभ करवा सकते है, अन्यथा ... जगह की कमी, अत: कैलेण्डर के रूप में। खूंटी पर लटको, मेरे रामजी । परोसने वाले नहीं हैं, अत: अतिथि के रूप में । खड़े-खड़े जीमो, मेरे राम जी । ................. पंकज पंडित२७, देवरा देवनारायण नगर,रतलाम (म.प्र.)

No comments: